क्यों आज के अत्याधुनिक युग में चल रही हैं ऐसी कुप्रथाएं ?
अमूमन खतना शब्द हमने मुस्लिम समुदाय से जोड़कर देखते रहे हैं अधिकतर मुस्लिम समुदाय में छोटे बच्चों के खतना को लेकर हम सुनते रहते हैं, लेकिन कई इस्लामिक देशों में आज भी छोटी बच्चियों या बालिग बच्चियों तक का खतना किया जा रहा है।
वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन की एक रिपोर्ट की मानें तो अफ्रीका और एशिया ही नहीं बल्कि यूरोप के भी ऐसे 30 देश हैं जहां अभी भी इस तरह की प्रैक्टिस होती है।
दुनिया भर में लगभग 20 करोड़ महिलाएं और लड़कियां ऐसी हैं जिन्हें ये झेलना पड़ता है। ये अधिकतर कम उम्र में किया जाता है, लेकिन कई बार लड़की के वयस्क होने के बाद भी ये होता है। जो कि अत्यंत दर्दनाक होता है। हालांकि, गार्डियन की एक रिपोर्ट मानती है कि इस आंकड़े से लगभग 7 करोड़ ज्यादा लड़कियां इसका शिकार होती हैं।
क्या ये सुरक्षित है?
नहीं महिला खतना बिल्कुल सुरक्षित नहीं है और इससे ना सिर्फ इन्फेक्शन का खतरा होता है बल्कि कई गंभीर मामलों में ये जानलेवा भी साबित हो सकता है। ये इतना खतरनाक है कि डब्लू एच ओ ने इसके खिलाफ मुहिम चलाई है और यही नहीं यूएन के एक इनीशिएटिव में ये माना गया है कि 2030 तक दुनिया को इस गंभीर समस्या से निजात दिला देंगे।
भारत में भी जारी है ये कुप्रथा
2017 में बोहरा मुस्लिम समुदाय की कुछ महिलाओं ने देश के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी से मिलकर इस प्रथा के बारे में जानकारी दी थी और इसे रोकने के लिए मुहिम चलाई थी। ये कुप्रथा भारत में भी जारी है और ये बहुत ही ज्यादा खराब है। जिस तरह के दर्द से लड़कियां गुजरती हैं उसका अंदाजा आप लगा भी नहीं सकती हैं।
ये बात सोचने वाली है कि दुनिया भर में इसे लेकर मुहिम चलाई जा रही है और फिर भी इस प्रथा को लेकर लोगों में जागरूकता नहीं है। 6 फरवरी को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इसे लेकर बैठकें होती हैं पर आज भी दूर दराज के इलाकों में कहीं ये चल रहा है। इसके बारे में जानकारी बांटने से ही इस प्रथा के खिलाफ मुक्ति पाई जा सकती है।
क्या है इस प्रथा को लेकर मेरी राय?
मेरी राय में ये प्रथा अमानवीय है और इसे बंद कर देना चाहिए। एक रिपोर्ट मानती है कि अफ्रीका में 4 में से 1 लड़की जो इस फीमेल म्यूटिलेशन का शिकार होती है वो किसी ना किसी तरह की जेनिटल परेशानी से गुजरती है। ये हेल्थ केयर प्रोवाइडर्स द्वारा नहीं करवाया जाता है बल्कि इसे तो बहुत से लोग किसी नीम-हकीम से करवाते हैं। लड़कियों के लिए सही तरह से स्टेरलाइजेशन का साधन भी नहीं होता है और साथ ही साथ उनके जेनिटल एरिया को रिकवर होने में बहुत समय लग जाता है।
इस तरह की प्रथा के बीच अगर ये कहा जाए कि महिला सशक्तिकरण के लिए काम हो रहा है तो मैं कहूंगी कि ये काम काफी कम हो रहा है। इस तरह के रिवाज को जड़ से मिटाने के लिए जिस तरह की जागरुकता की जरूरत है वो अभी कई विकसित देशों में भी नहीं आई है।
क्या आपको पता था इस प्रथा के बारे में ? हमें अपने जवाब आर्टिकल के नीचे दिए कमेंट बॉक्स में बताएं। अगर आपको ये स्टोरी अच्छी लगी है तो इसे शेयर जरूर करें। ऐसी ही अन्य स्टोरी पढ़ने के लिए जुड़ी रहे आपकी आवाज़ से ।