भिंड,
शहर के प्रशिद्ध 17वीं बटालियन माता मंदिर प्रांगण पर आयोजित हो रही श्री राम कथा अमृत महोत्सव में सातवे दिवस की श्री राम कथा मैं व्यास जी महाराज के रूप में अनंत श्री विभूषित हनुमत द्वार पीठाधीश्वर जगतगुरु रामानंदाचार्य स्वामी धीरेन्दराचार्य जी महाराज चित्रकूट धाम द्वारा श्री राम कथा का वाचन किया जा रहा है। आज सातवें दिन की कथा में दंदरौआ धाम के महामंडलेश्वर श्री श्री 1008 रामदास जी महाराज ने अपने दर्शन जनता को दिए और व्यास जी महाराज के बारे में बताया कि जगद्गुरु भगवान के दर्शन मात्र से ही जीवन मोक्ष प्राप्त कर लेता है।
कथा के सातवे दिवस महाराज जी ने संबोधित करते हुए बताया कि रामायण में एक पात्र है” राजा केवट” वह कौन था ?
केवट, वाल्मीकि रामायण के पात्र हैं। जिन्होंने प्रभ श्रीराम, सीता और लक्ष्मण जी को नदी पार करवाई थी। अयोध्या कांड में केवट के बारे में विस्तार से वर्णन किया गया है।
कहते हैं सृष्टि के आरंभ में केवट का जन्म जब हुआ था, तब धरती जलमग्न थी। वह एक कछुए के रूप में जन्में थे। और उस रूप में वह श्रीहरि के अमिट भक्त थे। तब उस कछुए ने मोक्ष पाने की हार्दिक इच्छा के साथ विष्णु जी के अंगूठे के स्पर्श की असफल कोशिश की थी।
इस घटना के बाद केवट ने अपने पूर्वजन्म यानी कछुए के रूप में कई वर्षों तक तप किया। और भगवान ने उसके तप को देखते हुए। केवट को मानव योनि दी। तब वह केवट के रूप में जन्मा, जिन्होंने प्रभु राम, सीता और लक्ष्मण को नदी पार करवाई थी। इसके बाद व्यास जी महाराज में जटायु के चरित्र का वर्णन करते हुए बताया कि जब जटायु नासिक के पंचवटी में रहते थे तब एक दिन आखेट के समय महाराज दशरथ से उनकी मुलाकाता हुई और तभी से वे और दशरथ मित्र बन गए। वनवास के समय जब भगवान श्रीराम पंचवटी में पर्णकुटी बनाकर रहने लगे, तब पहली बार जटायु से उनका परिचय हुआ। भगवान श्रीराम अपने पिता के मित्र जटायु का सम्मान अपने पिता के समान ही करते थे।
रावण जब सीताजी का हरण कर लेकर गया तब सीताजी का विलाप सुनकर जटायु ने रावण को रोकने का प्रयास किया लेकिन अन्त में रावण ने तलवार से उनके पंख काट डाले। जटायु मरणासन्न होकर भूमि पर गिर पड़े और रावण सीताजी को लेकर लंका की ओर चला गया।
सीता की खोज करते हुए राम जब रास्ते से गुजर रहे थे तो उन्हें घायल अवस्था में जटायु मिले। जटायु मरणासन्न थे। जटायु ने राम को पूरी कहानी सुनाई और यह भी बताया कि रावण किस दिशा में गया है। जटायु के मरने के बाद राम ने उसका वहीं अंतिम संस्कार और पिंडदान किया।